
सरस्वती पूजन से सद्बुद्धि प्राप्त होती है
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है। भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का , पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कम्पंन होने लगा, इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अदभुत शक्ति का प्राकट्य हुआ जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया । जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया ,संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई । जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी । तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
सरस्वती को बागीश्वरी,भगवती,शारदा ,वीणावादिनी और बाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है । मां सरस्वती का पूजन अनादि काल से चला आ रहा है विद्यार्थियों के लिए बुद्धि संचय का एक मात्र उपाय मां सरस्वती के पूजन व जप से प्राप्त हो जाता है ।
पूजन में सम्मिलित रमित दूबे, मनमोहन दूबे,छोटन कुमार, अनमोल कुमार , धिरू प्रसाद , मिलन कुमार , अनिकेत कुमार , उमेश दूबे , बबन दूबे , नित्यानंद दूबे , उमाकांत दूबे , विक्की कुमार , अशर्फी राम , सहित सैकड़ों भक्तों ने मां भगवती की पूजा अर्चना किया ।
चकिया से अमितेश कुमार रवि की रिपोर्ट